पांच राज्यों में चुनाव के बाद 8 से 9 रुपए तक बढ़ सकती है पेट्रोल-डीजल की कीमत

देश की बड़ी फ्यूल रिटेल कंपनियां अगले महीने मार्च में यूपी सहित पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेज बढ़ोतरी कर सकती हैं। इससे सरकार और केंद्रीय बैंक आरबीआई पर महंगाई को नियंत्रित करने का दबाव और बढ़ेगा। पेशेवर सेवाएं मुहैया कराने वाली फर्म डेलॉय टच तोहमात्सू इंडिया के पार्टनर देबाशीष मिश्रा ने यह अनुमान व्यक्त किया है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, राज्यों में विधानसभा चुनाव को देखते हुए रिटेल कंपनियों ने लम्बे समय से पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए हैं। 10 मार्च को चुनाव प्रक्रिया सम्पन्न होने के बाद कंपनियां बिक्री मूल्य में आई कमी को भरपाई के लिए 8-9 रुपए लीटर तक दाम बढ़ा सकती हैं।

सरकारी तेल कंपनियों इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल की घरेलू बाजार में 90% से ज्यादा हिस्सेदारी है। इन्होंने अंतरराष्ट्रीय कीमतों में तेजी के बावजूद तीन माह से ज्यादा समय से पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए हैं। मिश्रा ने कहा, हालांकि ये कंपनियां तकनीकी रूप से वैश्विक कीमतों के अनुरूप घरेलू कीमतों में संशोधन करने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन ऊंची कीमतों पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया के डर से चुनावों से पहले अक्सर कीमतें स्थिर रखती आई हैं। चुनाव के बाद जब दाम बढ़ते हैं तो सरकार इसका कुछ हिस्सा टैक्स में कटौती के जरिये अवशोषित कर सकती है और बाकी हिस्से का भार उपभोक्ताओं पर डाल देती हैं।

फर्म डेलॉय ने कहा-तेल कंपनियों ने 3 माह से नहीं किया है कीमतों में बदलाव

क्रूड में हर 10 डॉलर की वृद्धि पर जीडीपी ग्रोथ 0.35% होती है प्रभावित
क्रूड ऑयल की कीमतों में प्रति बैरल हर 10 डॉलर की बढ़ोतरी पर भारत की आर्थिक विकास दर 0.3% से 0.35% प्रभावित होती है। मिश्रा ने कहा, यदि क्रूड के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल से पार निकलते हैं तो भारतीय अर्थव्यवस्था को वास्तव में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना सरकार के लिए समस्या

पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना सरकार के लिए एक समस्या है क्योंकि एक ऐसे देश में जहां जीडीपी में 60% हिस्सेदारी निजी खपत की है, लोगों की खर्च योग्य आमदनी सीधे तौर पर प्रभावित होती है। वहीं, केंद्रीय बैंक के लिए ईंधन की ऊंची कीमतों का मतलब है महंगाई का तेजी से बढ़ना। ऐसे में रिजर्व बैंक के सामने अर्थव्यवस्था की टिकाऊ रिकवरी के लिए कर्ज की दरों को लंबे समय तक कम रखना की चुनौती होती है।

Via- Daily bihar

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