Rosera में आज भी कंधे पर किया जाता है माता दुर्गा का विसर्जन, 100 वर्षों से अधिक से चली आ रही है अनूठी परंपरा

समस्तीपुर जिले के रोसड़ा में बड़ी दुर्गा माता के विसर्जन की अनूठी परंपरा है. यहां पर माता रानी को भक्त कंधे पर उठाकर विसर्जन के लिए ले जाते हैं.  रोसड़ा की बड़ी दुर्गा मंदिर को लेकर स्थानीय लोग बताते हैं कि इसे करीब 100 साल पहले दरभंगा महाराज ने स्थापित किया था.

उसके बाद से यहां पर लगातार पूजा-अर्चना हो रही है. इस मंदिर में वैष्णवी माता की मिथिला पद्धति से पूजा की जाती है. शहर में सबसे पहले बड़ी दुर्गा माता ही विसर्जन के लिए जाती है.  

कंधो पर माता का होता है विसर्जन

आमतौर पर देखा जाता है कि प्रतिमाओं के विसर्जन में ट्रैक्टर-ट्रॉली या किसी दूसरे वाहन का सहारा लिया जाता है. लेकिन, रोसड़ा की बड़ी दुर्गा माता को विदाई के लिए लोगों के कंधों की जरूरत होती है. कंधे पर बड़ी दुर्गा माता के विसर्जन की परंपरा यहां पर कई दशकों से चली आ रही है।

हजारों माता के भक्त इस विदाई का हिस्सा बनते हैं. विसर्जन से पहले मां की प्रतिमा को कंधे पर ही पूरे शहर में भ्रमण करवाया जाता है. इस दौरान पूरे रास्ते शहरवासी और आसपास के हजारों लोग मां के दर्शन के लिए खड़े रहते हैं.

लोग खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं

माता की डोली को कंधा लगाने वाले अपने-आप को काफी सौभाग्यशाली मानते हैं. विसर्जन के दौरान भक्तों की आंखों में आंसू देखे जा सकते हैं. इस बार के विसर्जन के दौरान लोगों ने नम आंखों से माता से कोरोना से निजात दिलाने की प्रार्थना की है. 

कंधे पर दुर्गा माता की विदाई की परंपरा काफी कम जगहों पर है. स्थानीय लोगों के अनुसार यहां पर शुरू से ऐसे ही माता की विदाई होती आई है और आगे भी माता कंधे पर ही विदा होगी. विसर्जन की ये परंपरा राज्य में अनूठी मिसाल है.  

input:- aaj tak

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