200 साल पुरानी है विसर्जन की यह अनोखी परंपरा: समस्तीपुर में रस्सी और बांस के सहारे विसर्जित होती हैं मां दुर्गा, उमड़ती है भारी भीड़

समस्तीपुर में पिछले 200 सालों से विसर्जन की अनोखी परंपरा चली आ रही है। इस दौरान रस्सी और बांस के सहारे मां की प्रतिमा लेकर नाच-गान किया जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परंपरा 200 सालों से चली आ रही है।

प्रतिमा का विसर्जन दसवीं की अहले सुबह करते हैं। प्रतिमा स्थल से करीब 1 किलोमीटर तक लोग पैदल ही जुवारी नदी पहुंचते हैं और वहां प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। इस विसर्जन जुलूस में समस्तीपुर के अलावे बेगूसराय और खगड़िया जिले के लोग भी शामिल होते हैं। माना जाता है कि यहां लोगों की हर मुरादे पूरी होती हैं। क्योंकि यहां कामाख्या मंदिर का अंश रखा गया है।

लंबी है मुर्ति बनाने के लिए कलाकरों की वेटिंग लिस्ट

आपको बता दे कि मां की मुर्ति बनाने के लिए कलाकरों की वेटिंग लिस्ट बहुत लंबी है। पूजा समिति के लोगों का कहना है की आगामी 15 सालों तक प्रतिमा बनाने वाले कलाकार की बुकिंग हो गई है। इस बार बेगूसराय के एक नए कलाकार को नंबर दी गई है, जिन्हें 2040 में प्रतिमा बनाने का नंबर मिला है।

ऐसी हुई थी शुरूआत

बताया जाता है कि गांव के स्व. बतास साह ने कामाख्या से माता को यहां लाकर करीब 200 वर्ष पहले स्थापित किया था। उन्होंने एक साथ मां दुर्गा और मां काली को गांव में मिट्टी का मंदिर बना स्थापित किया। आज इनके खानदान के ही विशुन साह, त्रिवेणी साह, मदन साह, शिबू साह, हरि साह, निर्मल साह आदि लोग मंदिर की देखभाल व नियमित रूप से मंदिर में पूजा करते हैं।

Input : Dainik Bhaskar

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