कोरोना माहमारी का विद्यार्थियों पर प्रभाव; कईयों ने पढ़ाई छोड़ दी, पढ़िए इस article में

कहते हैं ‘कल क्या हो, कोई नहीं जानता है’, इस बात को कोई माने या नहीं माने लेकिन आज की स्थिती ने इन बातों को सिद्ध कर दिया है। कोरोना के वजह से न जाने कितनी विपदाएँ घटी हैं। इस महामारी के वजह से हमसब कहीं न कहीं वैसी जिंदगी जीने लगे हैं जैसा हमने कभी नहीं सोंचा था। सड़कों पर भुखमरी की हालत मे पैदल अपने प्रदेश लौट रहे लोग, दिल्ली तथा कोटा जैसे शहरों मे डेरा लेकर रह रहे विद्यार्थियों की रोती तथा मायूस चेहरें, नौकरी चले जाने के कारण हुई आत्महत्याएँ, ऐसी कितनी चीजें हैं जिसे हमसब ने इस महामारी में देखा है। आज देश की क्या स्थिति है वो किसी से छीपी हुई नहीं है। लेकिन इन सभी के बीच जो सबसे अधिक हतास वर्ग है उनमें से एक है, युवा वर्ग।

मेरा नाम सचिन है और मैं एक छात्र हूँ, छात्र होने के वजह मैं हमसभी पर होने वाले विभिन्न
गतिविधियों के प्रभाव को समझता हूँ। हमसब में से काफी लोग ऐसे हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है लेकिन इस स्थिति में भी वे ऊंचे सपने देखते हैं। लेकिन इस महामारी मे उनके सपने हारने लगे हैं, वे टूट चूके हैं क्योंकि इस महामारी के कारण कारण उन्हें घर से पैसे मिलने बंद हो गए हैं। एक तरफ दो वक़्त की रोटी के पैसे तो दूसरी तरफ उसी पैसे से कोचिंग के फीस, किताबें और ज़रूरत के सामान खरीदने हैं। पैसे के कारण कितनों को उनका डेरा मजबूरन खाली करना पड़ा जबकि उनके पास ना खाने के पैसे बचे थे और ना घर जाने का कोई साधन था। मै कोई काल्पनिक चीज नहीं लिख रहा हूँ, आप वही पढ़ रहे हैं जो सच है। कई लोगों से हमारी बात हुई और उनहोने अपनी परेशानी बताई तब मुझे लगा की उनकी बात को आगे लाना ज़रूरी है।

चन्दन अपना सपना पूरा करने कोटा, मेडिकल की तैयारी के लिए जा चुका था, उसे वहाँ रहे कुछ ही महीने हुए थे की पूरे देश मे महामारी के चलते लॉकडाउन लग गया, घर की आर्थिक स्थिति के वजह से फिर वापस कोटा नहीं जा सका और आज वह घर पर रहकर ही पढ़ाई कर रहा हैं, लेकिन ये बात आप अच्छे से समझते हैं की घर पर रहकर कितनी असरदार पढ़ाई होती है।

आरती और मनीषा अपने सपने को पूरा करने अपने शहर मुजफ्फरपुर गयी लेकिन महज़ 2 महीनो के बाद ही लॉकडाउन के वजह से वे घर वापस आ गयीं। उस वक़्त तक घर की आर्थिक स्थिति थोड़ी बहुत ठीक थी। कुछ महीनो बाद वे फिर अपने शहर चली गयीं की अब फिर से पढ़ाई शुरु कर सकें लेकिन कोरोना के कारण सारे स्कूल व कोचिंग बंद कर दिये गए। मध्यांवर्गीय विद्यार्थियों को शहर मे डेरा लेकर रहना कितना कठीन होता है ये बात आप उन्ही विद्यार्थियों से पूछिए जो वहाँ रहते हैं। घर की आर्थिक स्थिति के कारण वे वापस घर आ गयीं।

कितने लोग ऐसे भी हैं जिनके पास अंतिम मौका था और वो बाहर निकलने ही वाले थे की फिर से सब कुछ बंद हो गया और वे टूट गए। कितनों को अब दूसरा मौका मिलना मुश्किल हो गया है और कहीं ना कहीं इनसब चीजों का मुख्य कारण उनकी घर की आर्थिक स्थिति है। कई छात्र ट्यूशन पढ़ाकर अपनी खर्च उठाते थे लेकिन कोरोना के कारण वो भी बंद हो गया। आज पूरे देश मे चन्दन, आरती, मनीषा, दीपक, सुजीत जैसे न जाने कितने छात्र हैं जो आर्थिक स्थिति के वजह से अपने घर वापस आ गए हैं।

इस स्थिति मे बीती बातों को भूलकर आगे के बारे मे सोचना ही बहादुरी है। लोग जान बचाने के लिए न जाने कितने पैसे लगा रहे हैं तो हम पैसे के चलते अपनी जान को, अपनी सेहत को खतरे मे क्यों डालें। इस बात को समझना होगा की भले ही कुछ चीजें खत्म हो गई हों लेकिन अभी भी बहुत सी चीजें हैं जो बची है। और एक बहुत अच्छी बात भी किसी ने लिखी है “जान है तो जहान है”। आप यूं ही मुस्ककुरते रहिए और बीत चुकी बातों को भूलकर आगे के बारे मे सोचिए।

ये कुछ सच्चाई थी जो मैंने अनुभव किया और आपसभी के साथ साझा किया। सरकार हमेशा से युवाओ को नज़रअंदाज़ करते आई है लेकिन इस बार सरकार हम युवाओं के इस स्थिति पर ध्यान दे, हमारी यही गुजारिश है। आप अपना ध्यान रखिए, सुरक्षित रहिए।
Article:- Sachin Singh Prabhat

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