बिहार के डॉ अनिल दास: खुद मेहनत करके अफसर बने, अब ड्यूटी के बाद गरीबों बच्चों को UPSC के लिए तैयार कर रहे हैं

बिहार के छात्रों में UPSC का क्रेज शुरू से ही देखा जाता रहा है। इस राज्य में छात्र इंटरमीडिएट के बाद पहले विकल्प के रूप में मेडिकल इंजीनियरिंग को चुनते हैं। इसके ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद उनका प्रयोरिटी UPSC की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर IAS और IPS बनने की होती है। यही वजह है कि आईआईटी और एम्स जैसे संस्थान से इंजीनियरिंग और मेडिकल की डिग्री लेने के बाद भी छात्र इस प्रोफेशन में रहने के बजाय UPSC में हाथ आजमाते देखे जाते हैं। वहीं जो छात्र किसी कारणवश अगर आर्ट्स, साइंस या कॉमर्स के किसी सब्जेक्ट से केवल ग्रेजुएशन भी करते हैं तो भी वे UPSC की परीक्षा में बैठने की ख्वाहिश रखते हैं। यही वजह है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में बिहार के IAS और IPS काफी पैमाने पर पोस्टेड देखे जा सकते हैं।

हालांकि पिछले कुछ साल में UPSC की तैयारी थोड़ी महंगी हो गई जिससे गरीब तबके के छात्र इस कंपटीशन की तैयारी चाह कर भी नहीं कर पाते हैं। बिहार जैसे राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों की तादाद काफी ज्यादा है।

बिहार के मुजफ्फरपुर में तैनात एसडीओ डॉ. अनिल दास सिविल सर्विस का सपना देखने वाले उन बच्चों के लिए मसीहा बनकर सामने आए हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, मगर कुछ कर गुजरने की हिम्मत रखते हैं. अनिल दास ने एक मुहिम के तहत बिहार के कमजोर वर्ग से आने वाले छात्रों को UPSC की तैयारी कराने का प्रयास कर रहे हैं। इस मुहिम में उन छात्रों को जोड़ा जाएगा जो खराब आर्थिक स्थिति के चलते अपने गांव-कस्बे में रहकर UPSC की तैयारी कर रहे हैं। एसडीओ अनिल दास चाहते हैं कि गरीब तबके के छात्रों को भी वे तमाम नोट्स समेत तैयारी में प्रयोग होने वाली सामग्री उपलब्ध कराई जाए जिससे वे महानगरों के छात्रों को टक्कर दे पाएं। इतना ही नहीं, अनिल दास हर रविवार ऐसे छात्रों से खुद मिलेंगे और UPSC की तैयारी को लेकर उनकी हर उलझन को सुलझाने की भी कोशिश करेंगे। इस दौरान छात्रों को उन योजनाओं के बारे में बताया जाएगा, जहां से वे आर्थिक मदद लेकर अपनी तैयारी को जारी रख सकते हैं।

डॉ. अनिल अपनी इस मुहिम के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि उनकी कोशिश है कि वो उन बच्चों को सिविल सर्विस के लिए तैयार करें, जिनके पास फीस देने के पैसे नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि ज्ञान अमीरी और गरीबी को देखकर नहीं आती है। यह किसी के पास भी हो सकती है। इसलिए गरीबे के बच्चे को भी अमीरों की तरह शिक्षा का बराबर हक मिलना चाहिए। उनकी यह कोशिश उसी प्रयास का हिस्सा है। गरीब घर के बच्चे जब सिविल सेवा में पहुंचेंगे तो वे समाज और देश को ज्यादा बारीकी से देखे समझेंगे। गरीबों का ज्ञान देश के काम आएगा।

मालूम हो कि बिहार में इस तरह के प्रयास पहले से भी होते आ रहे हैं। गणितज्ञ आनंद कुमार गरीब तबके के बच्चों के मुफ्त में इंजीनियरिंग एग्जॉम में सफल होने की कोचिंग देते हैं।

Leave a Comment