मां ने स्कूल में खाना बनाकर, जमीन बेचकर बेटा को पढ़ाया, अब बेटा बना इनकम टैक्स ऑफिसर

Desk:- उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा जिसे लाखों विद्यार्थी पास कर राज्य के प्रशासनिक विभाग में कार्यरत होना चाहते हैं। लेकिन ये परीक्षा यूपीएससी जितनी ही कठिन होती है जिसे पास करना सभी के लिए आसान नहीं होता। छात्र इसे पास करने के लिए कोचिंग लेते हैं और कई साल लगा देते हैं। लेकिन कुछ छात्र कठिनाईयों को न देखकर सिर्फ अपने लक्ष्य को देखते हैं और उसे किसी भी हाल में पाकर ही रहते हैं। ऐसी ही संघर्ष भरी कहानी दिव्य प्रकाश सिसोदिया की रही है जो इस समय उत्तर प्रदेश में टैक्स ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं।

वो जब स्कूल में थे तो उनके पिता गुजर गए थे जिसके बाद उन्होंने बड़े ही संघर्ष सहते हुए जैसे तैसे 12वीं और फिर अपनी स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद इस परीक्षा को देने का निर्णय लिया। उनकी मेहनत रंग लाई उन्होंने यूपीपीसीएस की परीक्षा 6वीं रैंक के साथ पास की। उनका इनकम टैक्स ऑफिसर बनने तक का ये सफर काफी संघर्षों से भरा रहा।

पिता परिवार में एक बरगद के पेड़ की तरह होता है घर के सभी सदस्यों पर अपनी छांव बनाए रखता है। ये किसी भी परिवार के लिए बेहद दुखद स्थिति रहती है जब पिता आकस्मिक मृत्यु के चलते गुजर जाते हैं। ऐसे में परिवार पूरी तरह बिखर जाता है।

बच्चों का भविष्य, उनकी पढ़ाई, घर का खर्च, समाज में मान सम्मान सभी पर ग्रहण सा लग जाता है। ऐसा ही हुआ दिव्य प्रकाश के साथ। जब वो स्कूल की ही पढ़ाई कर रहे थे तो उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया। इस समय वो 0वीं कक्षा में थे पिता ही घर में अकेले आय का जरिया थे। उनके जाने के बाद दिव्य प्रकाश का भविष्य जैसे शून्य हो गया वो बताते हैं कि उन्हें लगता था कि अब उनका और उनकी मां का क्या होगा।

ऐसी स्थिति में दिव्य प्रकाश की मां ने हार नहीं मानी उन्होंने गांव के ही प्राइमरी स्कूल में मिड डे मील बनाने की नौकरी की जिसमें उन्हें हजार रुपये महीने के मिलते थे। जैसे-तैसे दिव्य प्रकाश ने 12वीं पास की और स्नातक के लिए दाखिला लिया और पढ़ाई के साथ ही नौकरी भी करने लगे।

उन्हें नौकरी करते हुए एहसास हुआ कि इससे उनकी समस्याएं दूर नहीं होंगी उन्हें कुछ बड़ा करना होगा। जॉब करते हुए ही उन्होंने यूपीपीसीएस परीक्षा निकालने का मन बनाया और जॉब छोड़कर उन्होंने पूरे समर्पण के साथ परीक्षा की तैयारी की। इस दौरान वो बच्चों को ट्यूशन देकर अपना खर्चा निकाला करते थे। लेकिन इसके बाद भी उनके पास इतना पैसा नहीं जट पा रहा था कि वो अपनी और अपनी बहनों की पढ़ाई को जारी रख सकें। इसलिए उन्होंने अपनी ढ़ाई बीघा जमीन में से सवा बीघा जमीन बेच दी और अपनी पढ़ाई को जारी रखा।

इस सैर को दिव्य ने अपना प्रेरणा स्रोत माना और अपने को पूरा समर्पित कर तैयारी में लग गए। अब उनके ऊपर ये भी दबाव था कि अब तो जमीन भी बेच दी अब परिणाम क्या निकला। यहां उनके सामने केवल एक ही विकल्प बचा था वो था पढ़ाई कर इस परीक्षा को पास करना। उन्हें आखिरकार 2008 में सफलता मिली।

अपनी कामयाबी पर और दूसरों को सलाह देते हुए दिव्य प्रकाश कहते हैं कि जब कुछ भी समझ न आए चारो और समस्या ही समस्या दीखाई दे रही हो तो उन्हीं समस्याओं को अपना मोटीवेशन बना लेना चाहिए।

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