कोयले के खदान में नौकरी कर पिता ने बेटे को पढ़ाया , बेटा DSP बनकर नाम किया रौशन

झारखंड:- हम सभी जानते हैं, “मंजिल तक पहुंचना सरल नहीं है”। लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। यदि मनुष्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय कर ले तो किसी भी प्रकार की चुनौती राह बाधित नहीं कर सकती है। एक ऐसे गांव का लड़का भी अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है जो बिजली के अभाव में जीवन-यापन करता हो या उसकी अन्य प्रकार की बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होती हो। गरीबी में रहकर भी सफलता हासिल किया जा सकता है। बस उसे पाने के लिए जी जान से मेहनत और लगन की आवश्यकता होती है।

आज की यह कहानी भी उपर्युक्त बातों से मिलती-जुलती है। यह एक गांव के ऐसे लड़के की कहानी है जिसके पिता कोयला के खाद्यान में मजदूरी करते थे तथा उस गांव में 70 वर्षों से बिजली भी नहीं पहुंची थी। इसके अलावा उन्हें शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल भी नहीं मिले। ऐसी हीं तमाम कठिनाइयों का सामना करके उस लड़के ने आखिरकार जीवन में उस मुकाम तक पहुंच गया जहां सभी पहुंचना चाहते हैं। वह एक DSP बन गए हैं।

किशोर कुमार रजक (Kishor Kumar Rajak) झारखंड (Jharkhand) के बोकारो के रहने वाले हैं। किशोर का जन्म एक बेहद गरीब परिवार मे हुआ था जिसकी वजह से उनका बचपन संघर्षों से सामना करने में व्यतीत हुआ। उनके परिवार के पास अधिक जमीन नहीं थी। इसके अलावा उनके पास इतने अधिक पैसे भी नहीं थे जिससे वह दुसरे शहर मे जाकर रोजगार की तलाश कर सके। किशोर के पिता धनबाद के कोयला खाद्यान में मजदूर की नौकरी करने लगे जिससे परिवार का गुजारा चल जाता था। लेकिन इतने अधिक भी आमदनी नहीं होती थी जिससे बच्चों की पढाई-लिखाई करवा सकें।

आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने की वजह से किशोर का नामांकन गांव के हीं सरकारी स्कूल में हुआ। सरकारी स्कूल में ना तो शिक्षक आते थे और ना हीं अच्छी पढाई होती थी। किशोर को हमेशा उनके परिवार से पढाई और सरकारी नौकरी के बारे में प्रेरणा मिलती थी। किशोर के पिता कहते थे, “मेरा बेटा कलेक्टर बनेगा। घर की स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन किशोर अपने परिवार के उम्मीदों को देखते हुए स्वयं हीं पढाई करते थे। किशोर पढाई के साथ-साथ खेती का कार्य भी करते थे। वह शाम मे गाय-बकरी भी चराने जाते थे। वे गांव के बच्चों के साथ मिलकर पढ़ाई अधिक करते थे।

उन्होंने बताया कि जब वह स्कूल में थे तो पढ़ाई छोड़कर कर घुमने चले जाते थे और छुट्टी के वक्त पर वापस आ जाते थे। एक दिन शिक्षक ने उनके इस कार्य को नोटिस किया और पिटाई कर दी। उन्होंने बच्चे को समझाते हुए कहा कि यदि तुममें में से किसी की भी पढ़ाई-लिखाई जीवन में सफल हो जाए तो मेरे लिए यह बहुत बड़ी बात है। मुझे बेहद प्रसन्नता होगी। किशोर ने उस शिक्षक द्वारा कहे इस बात को अपने मन में बैठा लिया। उसके बाद वह हमेशा पढ़ाई करने लगे।

किशोर ने 10वीं और 12वीं कक्षा पास करने के बाद इग्नू से इतिहास विषय से स्नातक की पढ़ाई किया। स्नातक के तीसरे वर्ष में वह फेल हो गए थे। परंतु उन्होंने हार नहीं माना और यूपीएससी (UPSC) की तैयारी में जुट गए। किशोर ने रिश्तेदारों से पैसे मांग कर किराए के लिए पैसे इकट्ठा किए और दिल्ली (Delhi) चले गए। वहां जाकर उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने लगे। वह किस मकान में किराए पर रहते थे उसी मकान मालिक के बच्चे को ट्यूशन पढ़ाना भी आरंभ किया। उसके बाद उनके पास बच्चों की संख्या बढ़ने लगी जिससे उन्हें खर्चे के पैसे निकल जाते थे।

किशोर ने वर्ष 2011 में UPSC की परीक्षा दिया तथा पहले हीं प्रयास में उन्हें सफलता हाथ लगी। वह असिस्टेंड कमान्डेंट बन गए। उसके बाद किशोर का चयन DSP के लिए हो गया था। उन्होंने सफलता हासिल करके साबित किया है कि यदि कोशिश सच्ची हो तो कामयाबी जरुर हासिल होगी।

Bihar Times किशोर कुमार रजक की मेहनत और संघर्ष को सलाम करता है तथा उनके सफलता के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं देता है।

Input:- The logically

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